#स्वदेशीचिट्ठी
41जानें बचाने में मिली सफ़लता,…आखिर काम आए अपने देसी बंदे!
देश,जिस घड़ी का इंतजार कर रहा था वह आ ही गई। 17 दिन से उत्तराखंड की सुरंग में फंसे 41लोग जब टनल से बाहर निकले तो देश ने राहत की सांस ली,बड़ी लड़ाई जीत ली।
12 नवंबर की सुबह 5:30 बजे उत्तराखंड में सिलक्यारा एंट्री प्वाइंट से 250 मीटर अन्दर अचानक भूस्खलन हो गया।इससे टनल में काम कर रहे 41मजदूर वहां फंस गए।भारत के करोड़ों लोगों की सांसे थम गईं।हर व्यक्ति, उनकी अपने परिवार की तरह चिंता करने लगा ।
दुनिया भर (अमरीका,जर्मनी आदि देशों) की मशीनें ड्रिल करने के लिए लगाई।उससे कुछ काम तो बना। लेकिन 62 मीटर की खुदाई में से 56 मीटर खोदने तक इन सब देशी, विदेशी मशीनों और विशेषज्ञों के दम फूल गए।
सेना को लगाया तो उन्होंने सीधा, सरल,और सबसे सस्ता मार्ग अपनाया। वे पारंपरिक तरीके से छोटे यंत्रों से चट्टानें और कोयला खदानों में खोदने वाले 12 बंदे ले आए। जिन्होंने केवल 24 घण्टे में ही बची 6 मीटर पहाड़ी को खोद मारा।पाइप लाइन शेष सेना के जवान बिछाते गए।और अपने 41 बंधुओं को बाहर निकाल लाए।
सारे विश्व के सुरंग खुदाई विशेषज्ञ इस सोच में अवश्य डूबे होंगे कि हमारे करोड़ों रुपयों की मशीने और अरबो रुपए की योजनाएं ठीक हैं या भारत के देसी बंदे(रेट माइनर) यह ज्यादा अच्छे हैं।
जो काम हो ही सुई का वह तलवार से नहीं होता।
जो भी हो, खैर सारा देश प्रसन्न है।12 नवंबर के दिन की दीपावली,देव दिवाली के अगले दिन देवताओं के साथ मनी। जिन्होंने भी इसमें मेहनत की उन सबको श्रेय है।हां! अब बाकी का श्रेय लेने की होड़ और आपस में वाक् युद्ध, राजनीतिज्ञों के लिए छोड़ दें।
हम तो चलें,अपने स्वदेशी, स्वावलंबी अभियान का काम करें:~ सतीश