नई दिल्ली:
अर्चना मीना ने कहा कि प्राचीन भारत की महिलाएँ केवल गृहिणी नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था की सक्रिय भागीदार थीं — वे कुटीर उद्योग, वस्त्र निर्माण, कृषि उत्पाद, औषधि निर्माण और व्यापार से गहराई से जुड़ी हुई थीं। औपनिवेशिक काल में जब ब्रिटिश शासन ने भारतीय कुटीर उद्योगों को कमजोर किया, तब महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता पर सबसे बड़ा आघात हुआ। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन ने महिलाओं को फिर से आत्मनिर्भरता की राह दिखाई। महिलाओं ने विदेशी वस्त्रों की होली जलाकर, चरखा चलाकर, और खादी पहनकर स्वदेशी को जीवन का हिस्सा बना लिया। उनके लिए स्वदेशी केवल विरोध नहीं, बल्कि पुनर्निर्माण का प्रतीक था।
आज की महिलाएँ भी इसी परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं। ग्रामीण भारत की लाखों महिलाएँ पापड़, अचार, डेयरी, मधुमक्खी पालन, बुनाई, सिलाई जैसे कुटीर उद्योगों के माध्यम से अपने परिवार और समाज को आत्मनिर्भर बना रही हैं। सरकार की योजनाएँ जैसे मुद्रा योजना, स्टार्टअप इंडिया, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ने महिला स्वयं सहायता समूहों को नई दिशा दी है। अर्चना मीना ने कहा कि आज की भारतीय महिला ‘वोकल फॉर लोकल’ की सच्ची प्रतीक है। डिजिटल माध्यमों के जरिए महिलाएँ अपने उत्पादों को देशभर में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुँचा रही हैं। वे अब केवल ग्राहक नहीं, बल्कि उद्यमी बन चुकी हैं — जो स्वदेशी के विस्तार की नई कहानी लिख रही हैं। उन्होंने बताया कि महिलाएँ पर्यावरण और स्वास्थ्य के प्रति भी सजग हैं — जैविक खेती, मिलेट्स (श्री अन्न), प्लास्टिक-मुक्त जीवनशैली अपनाकर वे सतत विकास में योगदान दे रही हैं। यह नारीशक्ति न केवल आर्थिक सशक्तिकरण की प्रतीक है, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण और सामाजिक समरसता की संवाहक भी है।
अंत में उन्होंने कहा,
“यदि स्वदेशी भारत की आत्मा है, तो उसकी धड़कन हमारी महिलाएँ हैं। जब भारत की स्त्रियाँ जागरूक होती हैं, तब परिवर्तन अनिवार्य होता है।”
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