रतलाम में आयोजित स्वदेशी मेले में “स्वदेशी स्वीकार — विदेशी बहिष्कार” को केंद्रीय और प्रेरक संदेश के रूप में रखा गया, जिसने पूरे आयोजन को एक राष्ट्रीय आत्मसम्मान और सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता की भावना से भर दिया। मेले का उद्देश्य स्थानीय कारीगरों, छोटे उद्यमियों, ग्रामीण शिल्पकारों और नवोदित व्यवसायों को एक ऐसा मंच देना था जहाँ वे अपने उत्पादों को सीधे जनता के सामने प्रस्तुत कर सकें। कार्यक्रम स्थल पर पारंपरिक हस्तशिल्प से लेकर आधुनिक स्वदेशी उत्पादों तक, विविधता की ऐसी झलक देखने को मिली जो भारत की आर्थिक और सांस्कृतिक शक्ति को प्रतिबिंबित करती है। मेले में आए परिवारों, युवाओं, महिलाओं और छात्रों ने न केवल उत्पाद खरीदे बल्कि स्टॉल पर मौजूद उद्यमियों से उनके निर्माण-प्रक्रिया, स्थानीय संसाधनों और भारतीय कौशल पर विस्तृत चर्चा भी की। इस संवाद ने यह समझने में मदद की कि स्वदेशी उत्पाद केवल वस्तुएँ नहीं, बल्कि श्रम, विरासत और स्थानीय समुदायों की जीविका का महत्वपूर्ण आधार हैं।
मेले का सबसे आकर्षक दृश्य बच्चों द्वारा किया गया मलखंभ योग प्रदर्शन रहा, जिसने भारत की पारंपरिक शारीरिक कला और अनुशासन की अनोखी झलक प्रस्तुत की। दर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट से इन नन्हे कलाकारों का उत्साह बढ़ाया और इस कला को आगे बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया। आयोजन में आए सभी आगंतुकों ने स्टॉलों का ध्यानपूर्वक भ्रमण किया और भारतीय वस्तुओं की उपयोगिता, टिकाऊपन और सांस्कृतिक महत्व पर चर्चा की। अनेक आगंतुकों ने यह स्वीकार किया कि स्वदेशी उत्पादों को अपनाना केवल आर्थिक निर्णय नहीं बल्कि राष्ट्रीय कर्तव्य है, क्योंकि इससे स्थानीय रोजगार बढ़ता है, गांव-घर की अर्थव्यवस्था मजबूत होती है और भारत आत्मनिर्भरता की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ता है। मेले ने यह भी संदेश दिया कि स्वदेशी वस्तुओं को अपनाना सिर्फ भावनात्मक निर्णय नहीं, बल्कि गुणवत्ता, विश्वास और दीर्घकालिक लाभ का व्यावहारिक चयन है। कुल मिलाकर रतलाम का यह स्वदेशी मेला आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को मजबूत करने वाला एक प्रेरक और प्रभावशाली आयोजन साबित हुआ।
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