भारत का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पिछले कुछ वर्षों से उल्लेखनीय परिवर्तन का अनुभव कर रहा है। स्वदेशी भावना और उच्च तकनीक का यह अनोखा संयोजन देश को आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य की ओर नई गति के साथ आगे बढ़ा रहा है। सरकार द्वारा लागू की गई Make in India और Production Linked Incentive (PLI) जैसी नीतियों ने स्वदेशी उद्योगों को मजबूती प्रदान की है, जबकि निजी क्षेत्र ने तेजी से ऑटोमेशन और डिजिटल तकनीक को अपनाना शुरू कर दिया है।
आज भारत की कई उभरती फैक्ट्रियाँ AI-संचालित मशीनों, रोबोटिक आर्म्स, IoT-आधारित मॉनिटरिंग सिस्टम, और स्मार्ट मैन्युफैक्चरिंग प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर रही हैं। इसके चलते उत्पादन क्षमता में वृद्धि, लागत में कमी और गुणवत्ता में सुधार हुआ है। ये तकनीकें न केवल उत्पादन की प्रक्रिया को तेज़ बनाती हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को प्रतिस्पर्धी भी बनाती हैं।
मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में इस "टेक्नो-स्वदेशी मॉडल" के कारण भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, रक्षा, टेक्सटाइल, फार्मा और इंजीनियरिंग उपकरणों जैसे क्षेत्रों में वैश्विक कंपनियों से निवेश मिल रहा है। भारत धीरे-धीरे वैश्विक सप्लाई चेन का विश्वसनीय हिस्सा बन रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यह गति जारी रही, तो 2030 तक भारत दुनिया के शीर्ष तीन मैन्युफैक्चरिंग हब में शामिल हो सकता है।
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